- परिचय
- खरबूजा बोने का सही समय,उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान
- खरबूजे की उन्नत किस्में
- खरबूजे के खेत की तैयारी और उवर्रक
- खरबूजे के बीजो की रोपाई का सही समय और तरीका
- खरबूजे के पौधों की सिंचाई
- खरबूजे के पौधों पर खरपतवार नियंत्रण
- खरबूजे के फलो की तुड़ाई, पैदावार
परिचय
खरबूजा ईरान, अरमीनिया और अनटोलिया मूल का फल है | किन्तु भारत में भी अब इसे अधिक मात्रा में उगाया जाने लगा है | भारत में खरबूजे की खेती उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, महाराष्ट्र, बिहार और राजस्थान में मुख्य रूप से कर अधिक मात्रा में उत्पादन भी प्राप्त किया जा रहा है |
खरबूजा बोने का सही समय,उपयुक्त मिट्टी, जलवायु और तापमान
खरबूजे की खेती किसी भी उपजाऊ मिट्टी में की जा सकती है,किन्तु अधिक मात्रा में उत्पादन प्राप्त करने के लिए हल्की रेतीली बलुई दोमट मिट्टी को उपयुक्त माना जाता है | इसकी खेती के लिए भूमि उचित जल निकासी वाली होनी चाहिए, क्योकि जलभराव की स्थिति में इसके पौधों पर अधिक रोग देखने को मिल जाते है | इसकी खेती में भूमि का P.H. मान 6 से 7 के मध्य होना चाहिए|
जायद के मौसम को खरबूजे की फसल के लिए अच्छा माना जाता है | इस दौरान पौधों को पर्याप्त मात्रा में गर्म और आद्र जलवायु मिल जाती है | गर्म मौसम में इसके पौधे अच्छे से वृद्धि करते है, किन्तु सर्द जलवायु इसकी फसल के लिए बिल्कुल उपयुक्त नहीं होती है | बारिश के मौसम में इसके पौधे ठीक से वृद्धि करते है, लेकिन अधिक वर्षा पौधों के लिए हानिकारक होती है | इसके बीजो को अंकुरित होने के लिए आरम्भ में 25 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है, तथा पौधों के विकास के लिए 35 से 40 डिग्री तापमान जरूरी होता है |
खरबूजे की उन्नत किस्में
पंजाब सुनहरी :- खरबूजे की इस क़िस्म को तैयार होने में 115 दिन से अधिक का समय लग जाता है | यह क़िस्म पंजाब कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना द्वारा तैयार की गयी है | इसमें निकलने वाले फलो में गूदा अधिक मात्रा में पाया जाता है, जो स्वाद में अधिक मीठा होता है| यह क़िस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 250 क्विंटल का उत्पादन दे देती है |
हिसार मधुर :- इस क़िस्म के फल बीज रोपाई के ढाई माह पश्चात् तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते है | इसे हरियाणा के चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्यालय, हिसार द्वारा तैयार किया गया है | इस क़िस्म में निकलने वाले फलो का छिलका धारीनुमा और अधिक पतला पाया जाता है | जिसमे नारंगी रंग का गुदा होता है | खरबूजे की यह क़िस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 200 से 250 क्विंटल का उत्पादन दे देती है |
एम.एच.वाई. 3 :-यह एक संकर क़िस्म है, जिसे जयपुर ने दुर्गापुरा मधु, कृषि अनुसंधान केंद्र दुर्गापुरा और पूसा मधुरस का संकरण कर तैयार किया है | इस क़िस्म के पौधे बीज रोपाई के 90 दिन पश्चात् तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते है | खरबूजे की इस क़िस्म में निकलने वाले फलो में 16 प्रतिशत अधिक मात्रा में मिठास पायी जाती है | यह क़िस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 200 क्विंटल का उत्पादन दे देती है |
मृदुला :- इस क़िस्म को तैयार होने में 90 दिन से अधिक का समय लग जाता है | जिसमे निकलने वाले फलो में गूदे की मात्रा अधिक तथा बीज कम मात्रा में पाए जाते है | इसके फल थोड़ा लम्बे और अंडाकार होते है | यह क़िस्म प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 250 क्विंटल का उत्पादन दे देती है |
सागर 60 एफ 1 :-गुजरात में अधिक मात्रा में उगाई जाने वाली यह एक संकर क़िस्म है | यह क़िस्म 90 से 95 दिन पश्चात् तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है | इस क़िस्म में निकलने वाले फलो के ऊपर धारीदार पतला छिलका पाया जाता है, जिसमे निकलने वाला गूदा नारंगी और स्वाद में अधिक स्वादिष्ट होता है | यह क़िस्म प्रति हेक्टयर के हिसाब से 230 से 270 क्विंटल का उत्पादन दे देती है |
पूसा शरबती :- खरबूजे की यह क़िस्म भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली द्वारा अमेरिकन क़िस्म के साथ संकरण कर तैयार की गयी है | यह अगेती पैदावार के लिए उगाई जाती है | भारत के उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश राज्य में इसे अधिक मात्रा में उगाया जाता है | इस क़िस्म को तैयार होने में 95 से 100 दिन का समय लग जाता है, जो प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 250 क्विंटल का उत्पादन दे देती है |
इसके अलावा भी खरबूजे की कई उन्नत क़िस्मों को अधिक उत्पादन देने के लिए उगाया जा रहा है, जो इस प्रकार है:- दुर्गापुरा मधु, एम- 4, स्वर्ण, एम. एच. 10, हिसार मधुर सोना, नरेंद्र खरबूजा 1, एम एच 51, पूसा मधुरस, अर्को जीत, पंजाब हाइब्रिड, पंजाब एम. 3, आर. एन. 50, एम. एच. वाई. 5 और पूसा रसराज आदि |
खरबूजे के खेत की तैयारी और उवर्रक
खरबूजे की खेती में भुरभुरी मिट्टी की जरूरत होती है | इसके लिए सबसे पहले खेत में मौजूद पुरानी फसल के अवशेषों को नष्ट करने के लिए मिट्टी पलटने वाले हलो से गहरी जुताई कर दी जाती है | जुताई के बाद भूमि में सूर्य की धूप लगने के लिए उसे कुछ समय के लिए ऐसे ही खुला छोड़ दिया जाता है | इसके बाद खेत में पानी लगाकर पलेव कर दिया जाता है, पलेव के बाद जब खेत की मिट्टी ऊपर से सूखी दिखाई देने लगती है | उस दौरान कल्टीवेटर लगाकर खेत की दो से तीन तिरछी जुताई कर दी जाती है | इससे खेत की मिट्टी में मौजूद मिट्टी के ढेले टूट जाते है, और मिट्टी भुरभुरी हो जाती है |
मिट्टी के भुरभुरा हो जाने के बाद खेत में पाटा चलाकर भूमि को समतल कर दिया जाता है | समतल भूमि में वर्षा के मौसम में खेत में जलभराव नहीं होता है | इसके बाद खेत में बीज रोपाई के लिए उचित आकार की क्यारियों को तैयार कर लिया जाता है | यह क्यारिया धोरेनुमा भूमि की सतह पर 10 से 12 फ़ीट की दूरी पर बनाई जाती है | इसके अलावा यदि आप बीजो की रोपाई नालियों में करना चाहते है, तो उसके लिए आपको भूमि पर एक से डेढ़ फ़ीट चौड़े और आधा फ़ीट गहरी नालियों को तैयार करना होता है| तैयार की गयी इन क्यारियों और नालियों में जैविक और रासायनिक खाद का इस्तेमाल किया जाता है | इसके लिए आरम्भ में 200 से 250 क्विंटल पुरानी गोबर की खाद को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से खेत में देना होता है |
इसके अतिरिक्त रासायनिक खाद के रूप में 60KG फास्फोरस, 40KG पोटाश और 30KG नाइट्रोजन की मात्रा को प्रति हेक्टेयर में तैयार नालियों और क्यारियों में देना होता है | जब खरबूजे के पौधों पर फूल खिलने लगे उस दौरान 20KG यूरिया की मात्रा को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से देना होता है | इन गड्डो और क्यारियों को बीज रोपाई से 20 दिन पूर्व तैयार कर लिया जाता है |
खरबूजे के बीजो की रोपाई का सही समय और तरीका
खरबूजे के बीजो की रोपाई बीज और पौध दोनों ही रूप में की जा सकती है | किन्तु पौध के रूप में रोपाई करना अधिक कठिन होता है | जिस वजह से किसान भाई इसे बीजो के माध्यम से लगाना अधिक पसंद करते है | एक हेक्टेयर के खेत में तकरीबन एक से डेढ़ किलो बीजो की आवश्यकता होती है, तथा बीज रोपाई से पूर्व उन्हें कैप्टान या थिरम की उचित मात्रा से उपचारित कर लिया जाता है | इससे बीजो को आरम्भ में लगने वाले रोग का खतरा कम हो जाता है |
इन बीजो को क्यारियों और नालियों की दोनों और लगाया जाता है | इन बीजो को दो फ़ीट की दूरी और 2 से 3CM की गहराई में लगाया जाता है | समतल भूमि में बीजो की रोपाई जिग-जैग विधि द्वारा की जाती है | बीज रोपाई के पश्चात् टपक विधि द्वारा खेत की सिंचाई कर दी जाती है | खरबूजों के बीजो की रोपाई फ़रवरी के महीने में की जाती है, तथा अधिक ठंडे प्रदेशो में इसे अप्रैल और मई के माह में भी लगाया जाता है |
खरबूजे के पौधों की सिंचाई
खरबूजे के पौधों को अधिक सिंचाई की आवश्यकता होती है | इसके खेत में बीज अंकुरण के समय तक नमी बनाये रखने के लिए पानी देते रहना होता है | इसलिए इसकी प्रारंभिक सिंचाई बीज रोपाई के तुरंत बाद कर दी जाती है | गर्मियों के मौसम में इसके पौधों को सप्ताह में दो सिंचाई की आवश्यकता होती है, तथा सर्दियों के मौसम में 10 से 12 दिन के अंतराल में पानी देना होता है | इसके अलावा जब बारिश का मौसम हो तो जरूरत के हिसाब से ही पौधों को पानी दे |
खरबूजे के पौधों पर खरपतवार नियंत्रण
खरबूजे के पौधे भूमि की सतह पर ही विकास करते है, जिस वजह से खरपतवार नियंत्रण की अधिक जरूरत होती है | इसके पौधों की पहली गुड़ाई 15 से 20 दिन के अंतराल में की जाती है, तथा बाद की गुड़ाई को 10 दिन के अंतराल में करना होता है | इसके अतिरिक्त यदि आप रासायनिक विधि का इस्तेमाल करना चाहते है, तो उसके लिए आपको ब्यूटाक्लोर की उचित मात्रा का छिड़काव भूमि पर करना होता है |
खरबूजे के पौधों में लगने वाले रोग एवं उपचार
क्रम संख्या | रोग | रोग के प्रकार | उपचार |
1. | पत्ती झुलसा | फफूंद | पौधों पर मैंकोजेब या कार्बेन्डाजिम का छिड़काव |
2. | चेपा | कीट | पौधे पर थाइमैथोक्सम का छिड़काव |
3. | लाल कद्द भृंग | कीट | पौधे पर एमामेक्टिन या कार्बेरिल का छिड़काव |
4. | सफेद मक्खी | कीट | पौधे पर इमिडाक्लोप्रिड या एन्डोसल्फान का छिड़काव |
5. | पत्ती सुरंग | कीट | पौधों पर एबामेक्टिन का छिड़काव |
6. | चूर्णिल आसिता | फफूंद | हेक्साकोनाजोल या माईक्लोबूटानिल का छिड़काव |
7. | सुंडी | कीट | पौधे पर क्लोरोपाइरीफास का छिड़काव |
8. | फल विगलन | सड़न | जल भराव रोकथाम कर |
खरबूजे के फलो की तुड़ाई, पैदावार और लाभ
खरबूज़े के पौधे बीज रोपाई के 80 से 90 दिन पश्चात् पैदावार देना आरम्भ कर देते है | जब इसके फलो का डंठल सूखा दिखाई देने लगे और फल से एक खास तरह की खुशबु आने लगे उस दौरान इसके फलो की तुड़ाई कर ली जाती है| फलो की तुड़ाई के बाद उन्हें बाजार में बेचने के लिए भेज दिया जाता है | इस हेक्टेयर के खेत में तक़रीबन 200 से 250 किवंटल का उत्पादन प्राप्त हो जाता है | खरबूज़े का बाज़ारी भाव 15 से 20 रूपए प्रति किलो होता है, जिससे किसान भाई इसकी एक बार की फसल से 3 से 4 लाख की कमाई कर अच्छा लाभ कमा सकते है |