- परिचय
- किस्मे
- भूमि और जलवाऊ
- भूमि की तैयारी
- बीज दर और बीजोपचार
- बुवाई रोपाई की वैज्ञानिक विधि
- सिंचाई
- खाद एवं उर्वरक प्रबंधन
तरबूज एक बेलवाली गर्मी के मौसम में उगाई जाने वाली कद्दूवर्गीय महत्वपूर्ण फसल है। तरबूज हमारे देश में एक बहुत ही लोकप्रिय फल है। गर्मी में तरबूज का फल, फ्रूट डिश, जूस, शरबत, स्क्वैश आदि अनेक रूप से उपयोग होता है। तरबूज के पोषण और स्वास्थ्य लाभ भी कई हैं। इसकी खेती आर्थिक रूप से फायदेमंद मानी जाती है। यह एक बेहतरीन और ताजगीदायक फल है। प्रति 100 ग्राम तरबूज में 95.8 ग्राम पानी होता है। इसी लिए गर्मियों मे तरबूज का सेवन धूप की वजह से होने वाले निर्जलीकरण से बचाता है और शरीर को ताजगी से भरे रखता है। तरबूज गर्मियों में अक्सर होने वाले मूत्रमार्ग के संक्रमण से निजात पाने में भी सहायक है। इसमें उपलब्ध पोटेशियम हमारे हृदय को स्वस्थ एवं रक्तचाप को संतुलित बनाए रखने के लिए काफी महत्वपूर्ण होता है। तरबूज लगभग 119 मि.ग्रा. पोटेशियम देता है, जो कि हृदय के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है।
तरबूज एक लो-कैलोरी फल है, जो सिर्फ 16 किलो कैलोरी ऊर्जा प्रदान करता है। यह प्रोटीन और वसा का निम्न स्रोत है। इसीलिए मोटे व्यक्ति भी तरबूज का सेवन बिना वजन बढ़ने की चिंता के कर सकते हैं। यह उपयोगी विटामिन ‘ए’ एवं विटामिन ‘सी’ भी प्रदान करता है। तरबूज लौह तत्व का एक बढ़िया स्रोत है और लगभग 7.9 मि.ग्रा. लौह तत्व देता है। इसलिए तरबूज किशोरी, सगर्भा एवं धात्री माता के लिए लौह का एक अच्छा स्रोत है। छह माह परे होने के तरंत बाद जब बच्चों को परक आहार देना होता है, तब तरबूज का रस एक स्वादिष्ट एवं स्वास्थ्यप्रद विकल्प है।
तरबूज की प्रमुख किस्मों एवं संकर में मैक्स , कोहिनूर , बाहुबली , ताज 20, शुगर बेबी, अर्का मानिक एवं अर्का ज्योति प्रमुख मानी जाती हैं। इसके अलावा कई बहुराष्ट्रीय बीज कंपनियों के बीज किसानों में प्रचलित हैं। बुआई के लिए उपयुक्त प्रजाति का चयन बाजार में मांग, उत्पादन क्षमता एवं जैविक अथवा अजैविक प्रकोप की प्रतिकारक क्षमता पर निर्भर करता है।
मध्यम काली, रेतीली दोमट मृदा, जिसमें प्रचुर मात्रा में कार्बनिक पदार्थ एवं उचित जल क्षमता हो, तरबूज की सफल खेती के लिए उचित मानी जाती है। तटस्थ मृदा (6.5-7 पी-एच मान वाली) इसकी खेती के लिए बेहतर मानी जाती है। मृदा में घुलनशील कार्बोनेट और बाइकार्बोनेट क्षार उपयुक्त नहीं हो सकते। नदी किनारे की रेतीली दोमट मृदा अच्छी मानी जाती है। तरबूज फल के मीठा होने के लिए गर्मी का मौसम उचित माना कर सकते हैं। जनवरी-फरवरी में कर सकते हैं।खरीफ मौसम में तरबूज की फसल लेने के लिए इसकी बुआई जून-जुलाई में कर सकते हैं। तरबूज फसल के लिए गर्म और शुष्क जलवायु उचित मानी जाती है। फल की वृद्धि और विकास के दौरान गर्म दिन (30 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान) और ठंडी रात तरबूज फल की मिठास के लिए अच्छी मानी जाती है।
गहरी जुताई के समय अच्छी तरह से विघटित गोबर या कम्पोस्ट खाद 15-20 टन प्रति हैक्टर मृदा में दें, ताकि खेत साफ, स्वच्छ एवं भुरभुरा तैयार हो। इससे अंकुरण प्रभावित हो सकता है।
तरबूज की उन्नत किस्मों के लिए बीज दर 2.5-3 कि.ग्रा. और संकर किस्मों के लिए 750-875 ग्राम प्रति हैक्टर पर्याप्त होती है। बुआई के पहले बीज को कार्बेन्डाजिम फफूंदनाशक 1 ग्राम प्रति लीटर पानी के घोल में लगभग तीन घंटे तक डुबोकर उपचारित कर सकते हैं। उसके बाद उपचारित किए हुए बीजों को नम जूट बैग में 12 घंटे तक छाया में रख सकते हैं और फिर खेत में बुआई कर सकते हैं।
भूमि की तैयारी के बाद 60 सें.मी. चौड़ाई और 15-20 सें.मी. ऊंचाई वाली क्यारियां (रेज्ड बेड) तैयार की जाती हैं। क्यारियों में 6 फीट का अंतर रख सकते हैं। क्यारियों पर बीचों-बीच में लेटरल्स फैलाने चाहिए। क्यारियों को 4 फीट चौड़ाई के 25-30 माइक्रॉन मोटे मल्चिंग पेपर से कसकर फैलाना चाहिए। क्यारियों पर कसकर फैले मल्चिंग पेपर में बुआई/रोपण के कम से कम एक दिन पहले 30-45 सें.मी. की दूरियों पर छेद कर लेना चाहिए। इससे मृदा की गर्म हवा को बाहर निकाल सकते हैं।बुआई/रोपण से पहले क्यारियों की सिंचाई करें। प्रोट्रे में कोकोपीट का उपयोग करके 15-21 दिनों की आय के पौधों का : रोपाई के लिए उपयोग करें।
रोपाई का काम सुबह या शाम कियाजाना चाहिए और आधा घंटा टपकन सिंचाई चालू रखे । पहले 6 दिन मृदा प्रकार अथवा जलवायु के अनुसार सिंचाई करें (प्रत्येक दिन 10 मिनट), शेष सिंचाई प्रबंधन फसल वृद्धि और विकास के अनुसार करें। तरबूज फसल पानी की जरूरत के प्रति बहुत संवेदनशील होती है। प्रारंभिक स्थिति में पानी की आवश्यकता कम होती है। वृद्धि और विकास अवस्था के अनुसार पानी की जरूरत बढ़ जाती है। यदि प्रारंभिक अवस्था में पानी अधिक हो जाता है, तो अंकुरण, रोपाई की वद्धि और कीट एवं रोग संक्रमण पर हानिकारक प्रभाव करता है। जल प्रबंधन मृदा के प्रकार और फसल के विकास पर निर्भर पड़ता है। सामान्यतः 5-6 दिनों के अंतराल पर पानी देना चाहिए। फलधारण से पानी का तनाव नहीं होना चाहिए। सुबह 9 बजे तक सिंचाई करें। अनियमित सिंचाई से फल फटना. विकत आकार वाले फल एवं अन्य विकृतियों की आशंका होती है।
मृदा जांच के आधार पर खाद और उर्वरक का प्रयोग करना उचित रहता है। अच्छी तरह से विघटित गोबर या कम्पोस्ट खाद 15-20 टन प्रति हैक्टर खेत तैयार करते समय मृदा में दें। नीम खली (नीम केक) 250 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर दे सकते हैं। जैविक उर्वरक एजोटोबॅक्टर 5 कि.ग्रा., पी.एस.बी. 5 कि.ग्रा. और टाइकोडर्मा 5 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर रासायनिक उर्वरक प्रयोग से लगभग 10वें दिन के बाद देना उचित माना जाता है। पानी में घुलनशील जैव उर्वरक टपकन सिंचाई से भी दे सकते हैं। जैव उर्वरक का रासायनिक उर्वरक के साथ प्रयोग न करें। तरबूज फसल के लिए रासायनिक उर्वरक के रूप में प्रति हैक्टर 50 कि.ग्रा. नाइट्रोजन की मात्रा (यूरिया 109 कि.ग्रा.), 50 कि.ग्रा. फॉस्फोरस (एस.एस.पी. 313 कि.ग्रा.) एवं 50 कि.ग्रा. पोटाश (एम.ओ.पी. 83 कि.ग्रा.) बुआई/रोपण के समय दिया जाना चाहिए। शेष नाइट्रोजन की मात्रा 50 कि.ग्रा. (यूरिया 109 कि.ग्रा.) को बुआई के 30, 45 एवं 60 दिनों में समान भाग में देना चाहिए। खाद का उपयोग मृदा में उपस्थित आवश्यक पोषक तत्वों की उपलब्धता एवं मृदा परीक्षण के ऊपर निर्भर रहता है